पिता
पिता
है पिता चिंतित कर्ण के लिए,
और एक पिता भी चिंतित है अर्जुन के लिए|
है पिता चिंतित कर्ण के लिए,
और एक पिता भी चिंतित है अर्जुन के लिए|
चिंतित सूर्यदेव आज नहीं देना चाहते दर्शन ,
जानते हैं वे कि इसी में है कर्ण का रक्षण |
हो अगर सूर्य उदय ; छल द्वार पर आएगा ,
पुत्र अर्जुन की खातिर स्वयं पर लांछन लगवाऐगा |
दोनों देव हैं, दोनों देवता के प्रसाद हैं,
पर जीतेगा वही जिसके दीनानाथ है|
सब अलग होता गर भाई-भाई मिल जाते ,
ऐसे पुत्रों को प्राप्त कर पिता गर्व से हर्षाते |
पर पिता की विडंबना कौन समझ पाया है ?
उसने तो सामने कठोर और अकेले में आंसू बहाया है |
कहते हैं ,माता ही ममता की मूरत होती है,
पर पिता को भी बच्चों की चिंता होती है|
मां के आंसू को सबने जाना है ,
पर क्या पिता की घुटन को किसी ने पहचाना है
-प्रा. पायल जायसवाल
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Father's day special
कवि संजीव सिंह जी की पिता और पुत्री पर बनी कविता :-
बाबू जी
सच बात पूछती हूं बताओ ना बाबूजी
छुपाओ ना बाबू जी
क्या याद मेरी आती नहीं
पैदा हुई घर में मेरे मातम- सा छाया था,
पापा तेरे खुश थे मुझे मां ने बताया था,
ले - ले के नाम प्यार जताते भी मुझे थे,
आते थे कहीं से तो बुलाते भी मुझे थे,
मैं हूं नहीं तो किसको बुलाते हो बाबूजी...??
रुलाते हो बाबूजी
क्या याद मेरी आती नहीं .....
हर ज़िद मेरी पूरी हुई
हर बात मानते,
बेटी थी ,मगर बेटों से
ज्यादा थे जानते,
घर कभी होली कभी दीपावली आई,
सैंडिल भी मेरी आई मेरी फ्रॉक भी आई,
अपने लिए बंडी भी न लाते थे बाबूजी,
क्या कमाते थे बाबूजी
क्या याद मेरी आती नहीं…..
सारी उमर खर्चे में कमाई में लगा दी,
दादी बीमार थी, तो दवाई में लगा दी,
पढ़ने लगे हम सब तो पढ़ाई में लगा दी,
बाकी बचा वो मेरी सगाई में लगा दी,
अब किसके लिए इतना कमाते हो बाबू जी
बचाते हो बाबू जी
क्या याद मेरी आती नहीं.....
कहते थे मेरा मन कही एक पल लगेगा
बिटिया विदा हुई तो घर ये घर न लगेगा
कपड़े कभी,गहने कभी सामान संजोते
तैयारीयां भी करते थे ,
छूप - छूप थे रोते
कर- कर के याद अब तो न रोते हो बाबू जी
न सोते हों बाबू जी
क्या याद मेरी आती नहीं.....
कैसी परंपरा है ये कैसा विधान है....?
पापा बता ना मेरा कौन - सा मेरा जहांन है
आधा यहां आधा वहां जीवन है अधूरा
पीहर मेरा पूरा हैं न
ससुराल है पूरा
क्या आपका भी प्यार अधूरा है बाबूजी
न पूरा है बाबू जी
क्या याद मेरी आती नहीं.....
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